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बनमनखी अनुमंडल अंतर्गत गोरेलाल मेहता महाविद्यालय पूर्णिया विश्वविद्यालय पूर्णिया (बिहार) की एकमात्र अंगीभूत इकाई 17 जुलाई सन् 1955 से ही अति पिछड़े इलाके में उच्चशिक्षा का अलख जगा रहा है उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के कारण ही इस महाविद्यालय को वर्ष 1977 ई0 में तत्कालीन ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय दरभंगा के द्वारा अंगीभूतीकरण किया गया।

पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से बनमनखी की अपनी एक अलग पहचान है परमहंस गुरु महर्षि मेंहीदास एवं भक्त प्रहृाद की जन्मस्थली, बनमनखी पूर्णिया सहरसा राष्ट्रीय राजमार्ग 107 पर अवस्थित एक जंक्शन के रूप में भी जाना जाता है ।

बनमनखी स्थित सिकलीगढ़ धरहरा के टिले आज भी पुरातत्ववेत्ताओं को अपनी और आकर्षित करते हैं तथा उनके गर्भ में अतीत के असंख्य धरोहर आज भी सुरक्षित है धीमा के बाबा धीमेष्वरनाथ मंदिर का स्वप्रकटित शिवलिंग आज भी इस क्षेत्र के जमास्था का महत्वपूर्ण केंद्र बिंदु है। किसकेे निकट अवस्थित चंडिका स्थान पूरे वातावरण को भक्ति में बनाने के लिए पर्याप्त है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी बनमनखी के क्रांतिकारियों ने अपनी कुर्बानियों से क्षेत्र का नाम राष्ट्रीय स्तर पर रौशन किया है इस कड़ी में इस महाविद्यालय के संस्थापक स्वर्गीय अनूपलाल मेहता का नाम आदर पूर्वक लिया जाता है। महान स्वतंत्रता सेनानी तथा समाजसेवी स्वर्गीय अनूपलाल मेहता ने अपनी संपत्ति भूमि दानस्वरूप प्रदान कर अपने स्वर्गीय पिता गोरेलाल मेहता के नाम पर 17 जुलाई 1955 ई0 में इस क्षेत्र में उच्चशिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस महाविद्यालय की स्थापना की। वर्तमान में यह महाविद्यालय अपने विद्वान प्रधानाचार्य प्रो0 (डॉ) अनंत प्रसाद गुप्ता के दिशा निर्देशन में विकास के नित नई गाथाएं लिख रहा है और इसने बिहार के सीमांचल एवं कोसी क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना रखी है ।